(नागपत्री एक रहस्य-13)
सावित्री देवी की बातों को दिनकर और चंदा बड़ी ध्यान पूर्वक सुन रहे थे, कि तभी घर के कामों में व्यस्त चंदा की मां ने कहा, दीदी अच्छा एक बात बताओ, आप भी तो गए थे दिनकर जी के जन्म से पूर्व उसी मंदिर में??
कहते हैं कि पिताजी उन सौभाग्यशाली व्यक्तियों में से हैं, जिन्होंने कुबेर की चाबी के दर्शन किए और देखिए तब से उनका व्यापार लगातार बढ़ता ही जा रहा है, ऐसा लोग कहते हैं, क्या सच में उस स्थान पर कोई ताला चाबी से संबंधित राज छिपा है?? क्या लोग सही कहते हैं?? क्या वास्तव में ऐसी भी कोई चीज होती है, यकीन नहीं होता।
क्या आपने भी उस चाबी के दर्शन किए सच-सच बताएं??
बड़ी जिज्ञासा है उस विषय में जानने की, मैंने कई बार सोचा भी था, कि आप से पूछूंगी...लेकिन ऐसा संयोग ना बन पाया। लेकिन मास्टर जी के मुंह से सुना जरूर है, कि दिनकर जी के पिता को देवी की अनुपम कृपा प्राप्त है,
और मैंने देखा भी है कि वे जब भी यहां आते, एक बार उस मंदिर के बिना दर्शन किए हुए ना लौटते, और इसलिए उन्होंने उस गांव के युवक और युवतियों को उच्च अध्ययन के साथ धार्मिक ग्रंथ और दैवीय शक्ति, वेद पुराण इत्यादि के अध्ययन हेतु भी प्रेरित किया है।
उनके द्वारा कही गई हर बात युवाओं को गांव के सुकून शांति में रहने और शहर में पलायन न करने की ओर प्रेरित करती है, शुक्रगुजार है कि हमें ऐसा परिवार मिला अपनी बेटी के रिश्ते के लिए....
खैर रिश्तेदार तो हम पहले भी थे ही, लेकिन यह रिश्ता बड़ा ही अनोखा है, उनकी बातें सुन सावित्री जी मंद मंद मुस्कुराती हुई मास्टरनी (चंदा की मां) की ओर देखने लगी ।
लेकिन दिनकर के सामने तो जैसे एक और नई कथा प्रस्तुत हो गई, एक ऐसा चमत्कार जो खुद उनके परिवार से जुड़ा हुआ है, क्या वाकई उनके पिता इतने सौभाग्यशाली हैं, कि उन्हें खुद उस चमत्कारी चाबी ने दर्शन दिए, सोचते हुए उनके बारे में विस्तृत जानकारी की इच्छा से उन्होंने अपनी मां की और देख सवाल किया...
क्या यह बात सच है मां?? क्या वाकई ऐसा भी कुछ है वहां??
हां बिल्कुल... सावित्री देवी ने तपाक से जवाब दिया, मैं जानती थी, चंदा की मां वाकई चालाक है, यह सवाल बिना पूछे वह रह जाए, ऐसा संभव नहीं है, ऐसे ही थोड़ी ना समधन बनी है मेरी,
हां सही बात ही हैं, इन्होंने एक दफा मुझसे जिक्र किया था मुझसे, कि कैसे व्यापार में लगातार नुकसान और बहुत सी परेशानियां एक साथ आ जाने से....
एक समय हम बहुत परेशान चल रहे थे, नौबत यहां तक आ गई थी, कि जिस अनाथ आश्रम और वृद्ध आश्रम को इनके पिताजी ने समाज कल्याण के लिए चलाया था, उसका खर्च भी उठा पाना मुश्किल हो गया था, उस ट्रस्ट के नाम लगभग बीस एकड़ जमीन रही होगी, तब हमने फैसला किया कि चाहे जो हो जाए, हम आश्रम के कार्य में किसी भी प्रकार की कोई बाधा नहीं आने देंगे।
यह सोचकर वे एक दिन घर से निकले और उनके मित्र साहूकार से जाकर मिले दोहरी मनसा से....
पहला कि शायद मित्र से कोई मदद मिल जाए और जमीन ना बेचना पड़े, क्योंकि वह पैतृक संपत्ति है।
दूसरा यदि तब भी बात ना बने तब इस शर्त पर जमीन को बेच आ जायेंगे , जब पुनः स्थिति ठीक होगी तब वह अपने मित्र से पुनः उस जमीन को खरीद लेंगे।
यह सोचकर वे अपने उस साहूकार मित्र के पास जा पहुंचे, जो उस समय आपकी कुलदेवी के मंदिर में पूजन करने आए थे, इसलिए इन्होंने उस समय व्यग्रता के साथ यह निर्णय लिया कि उनका इंतजार घर में करने से अच्छा मंदिर ही आकर मिले।
यह सोच वे नाग देवी के मंदिर पहुंच गए, दिल में भारी संख्या और उम्मीद लिए, वे मंदिर पहुंचे ही थे कि उन्हें वहां का वातावरण और देवी का चमत्कार का स्पष्ट अनुभव होने लगा,
ऐसा कहते हैं कि मुसीबत के समय व्यक्ति ईश्वर को तहे दिल से याद करता है, और फिर यह तो वैसे भी धार्मिक प्रवृत्ति के थे, नाग शक्ति से भली-भांति परिचित थे।
उन्होंने मित्र की बात भूल पहले दर्शन के प्राथमिकता दी, और पास के सरोवर में जा महादेवी को स्मरण कर डुबकी लगा दी, और उन्हीं गीले कपड़ों में वे मंदिर की और अनायास ही चल पड़े।
लेकिन वे खुद भी नहीं जानते थे, कि भक्त श्रंखला से परे उनके कदम किस ईश्वरी शक्ति से प्रेरित होकर मुख्य मंदिर की बजाय गर्भ गृह की तरफ बढ़ रहे थे, जिसका ज्ञान वास्तव में विरले लोगों को ही था।
ऐसा लग रहा था जैसे कोई अप्रत्याशित शक्ति उनका मार्गदर्शन कर रही है, और वे अपने आप को पूर्ण रूप से समर्पित कर सब कुछ भूल उस और खींचे जा रहे थे, मंदिर के मुख्य पुजारी जो उस समय गर्भ गृह में पूजन हेतु उपस्थित थे, उन्हें देख समझ गए कि मामला क्या है??
उन्होंने बिना हस्तक्षेप किए सिर्फ इनके हाथ में कुछ कुछ पुष्प रख, उस जल सरोवर की ओर इशारा कर दिया, जहां नाग माताओं के साथ शिव परिवार की उपस्थिति मांगी जाती है।
ऐसा कहा जाता है कि उस स्थान तक पहुंच पाना सबके लिए संभव नहीं है, यहां तक कि खुद पुजारी कभी भी उस स्थान का पता नहीं बताते, क्योंकि बिना दैवीय इच्छा के उस तरफ जाने की जिद करने वाला कभी जीवित नहीं बचा, इनके पिता वह सौभाग्यशाली मनुष्यों में से थे, जिन्हें ऐसा सौभाग्य मिला,
वहां पहुंचते ही उन्होंने अश्रु धारा के साथ अपने संपूर्ण मन की व्यथा और परेशानियां एक ही स्वर में उन नाग देवियों को कह सुनाई, और मदद की गुहार करते हुए वे एक टक बिना रुके नाग शक्तियों का आह्वान करने लगे।
उस समय जाने किस वेद पुराण और कहां से पढ़े हुए मंत्र श्लोक के रूप में उनके मुख से प्रकट हो रहे थे, कि तभी तेज प्रकाश पुंज के साथ नाग प्रतिमाएं उन्हें जीवंत सी महसूस हुई, और सरोवर से चमकती हुई चाबी जिसे पंख की तरह आकृति बनी, वह उड़कर निकली और चमकते हुए सामने आई, और अचानक दर्शन देकर विलुप्त हो गई।
जिसके दर्शन के पश्चात इनके पिता को बड़ा ही सुकून महसूस हुआ, जैसे सारी चिंताएं समाप्त हो गई और वे वहां से लौट आए।
वापसी में उन पंडित जी ने बताया कि आप जिस चाबी के दर्शन करके आ रहे हो, वह कुबेर के खजाने की चाबी है जो यहां संरक्षित है, जो भी इस के दर्शन के दैवीय शक्ति कृपा से कर लेता है, उसके जीवन के सारे प्रश्न और परेशानियां अपने आप उत्तर में परिणित हो जाती है, इसका प्रभाव आप आगे अनुभव करोंगे।
जाइए कल्याण हो कहकर पंडित जी चले गए, और वाकई तब से जैसे जीवन के सभी किस्मत के ताले खुल गए, उन्होंने जहां भी कदम रखा, तरक्की ही पाया।
क्रमशः.....
Babita patel
15-Aug-2023 01:59 PM
Nice
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